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पवन दुर्गम / पंकज सिंह भदौरिया @ – बीजापुर / दंतेवाड़ा- धूर नक्सल प्रभावित जिला बीजापुर जहाँ शिक्षा स्तर की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये खोले गये आश्रम विद्यालय पोटाकेबिनों में पदस्थ 311 अनुदेशक 34 रेसीडेंसीयल बालक बालिका आश्रम विधायलो में अपनी सेवाएं कई वर्षो से दे रहे है। सोचिये प्रशासन इन्हें २४ घण्टे की पारश्रमिक मेहनत के एवज में महज 7000 रुपये एकमुश्त वेतन देता है। यह हम नही बीजापुर जिले से निकले एक जिला मिशन लीडर के एक आदेश में नजर एकाएक नजर पड़ी तो दिखाई दे गया। मतलब नक्सल प्रभावित जिले में शिक्षा विभाग ने अंदुरुनी इलाको में कई आश्रम विद्यालय पोटाकेबिन तो खोल रखे हैं। पर उन आश्रमो में अंदुरुनी ग्रामीण क्षेत्रो से पहुँचे तमाम ट्रायबल बच्चो की शिक्षा का भार भी इन्ही 7000 एकमुश्त मासिक मानदेय वाले टेम्प्रेरी अनुदेशको के कंधे पर है। जिन्हें प्रशासन आदेश में अनुदेशको को रेसीडेंसीयल स्कूल में रहना अनिवार्य, श्रमिक की तरह आश्रम में फुलवारी बगीचा बनाने की जबाबदारी,बच्चो के स्वास्थ्य की पूरी जिम्मेदारी, अपने काम से जरा हटा तो सेवा समाप्त, अधीक्षकों के दिये काम देखना,साथ ही बच्चों के मेष से ही अनुदेशको की भोजन व्यवस्था बता रहे है। मतलब सोचिये किस तरह से 7000 रुपये में 1 बंधुआ मजदूर की तरह आदिवासी क्षेत्रों में बेरोजगारी के चलते अनुदेशक अपनी सेवाएं दे रहे है। और जिनके भविष्य का भी कोई ठौर-ठिकाना नही।
◆ छग में सरकार मनरेगा के मजदूरों को 174 रुपये रोजाना 8घण्टे काम के एवज में देती है। जिन्हें अकुशल श्रमिक कहते है। अगर मनरेगा का मजदूर भी 30 दिन तक लगातार काम करेगा तो उसका भी पारश्रमिक 5220 रुपये बन जाता है। मतलब अनुदेशको के एकमुश्त वेतन से महज 1780 रुपये कम। पर मनरेगा का मजदूर दिन में ही डियूटी करता है। और बस्तर के नक्सल प्रभावित जिलों में संचलित पोटाकेबिन में पदस्थ अनुदेशक 24 घण्टे वही रहकर डियूटी करते है। आपको यह भी बता दे कि अनुदेशक ही असल मे बच्चो को इन आवासीय विद्यालयों में पढ़ा भी रहे है। जिन्हें सरकार पिछले वर्ष तक दंतेवाड़ा में 5 हजार, बीजापुर,सुकमा में 6 हजार एकमुश्त देती थी।जो कि सेवा के बदले दिया जाने वाला पारश्रमिक के हिसाब से बहुत हीं कम दिखाई देता है। अगर सरकार सच मे बस्तर में संचलित शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करना चाहती है।
तो नक्सलग्रस्त आश्रमो,विद्यालयों में नियमित शिक्षकों की भर्ती करें साथ ही युवाओ को रोजगार के नाम पर अनुदेशको की तरह छलावा पदद्दति पर न रखे। ताकि आज नही तो कल शासन कुछ अच्छा करेगी कि नीयत लेकर अपना बेड़ा गर्क करते रहे।
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