बीजापुर @:- इन दिनों जिले में अधिकारियों द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धज्जियां उड़ाई जा रही है। छत्तीशगढ़ सूचना का अधिकार अधिनियम( संशोधित) की आड़ लेकर अधिकारी आवेदक को जानकारी के लिए दफ्तरों के चक्कर कटवा रहे हैं। यहां कानून की आड़ लेकर पारदर्शी प्रक्रिया के नाम पर भ्रस्टाचार का खेल फल फूल रहा है। बस्तर वनाच्छादित क्षेत्र होने के साथ ही नक्सली इलाका है इसीलिए अधिकारी पैसों के हेरफेर का बडा खेल खेलते हैं और भ्रस्टाचार को दबाने के लिए सूचना के अधिकार कानून में मांगी गई जानकारी की जगह आवेदक को गुमराह किया जाता है ताकि जानकारी देने से बचा जा सके।

मामला बीजापुर वनमंडल के मद्देड रेंज है, जनसूचना अधिकारी अधिकारी से आवेदक ईश्वर सोनी ने वित्त वर्ष 2018 -2019 के योजनाओं की जानकारी एंव आय व्यय का ब्यौरा मांगा था। सबंधित अधिकारी ने पहले तो आवेदन में सभी योजनाओं की जानकारी एक साथ देने से इनकार करते हुए सूचना अधिकार अधिनियम के तहत दिए गए आवेदन को 25 दिनों बाद निरस्त कर दिया था। जिस पर आवेदक ईश्वर सोनी ने पुनः अलग अलग आवेदन देते जानकारी मांगी जिस पर विभाग ने 30 दिन निकलने के बाद भी कोई जानकारी नही दी। इससे साफ जाहिर होता है कि अधिकारी जानबुझकर अपने भ्रस्टाचार को छिपाने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के प्रावधानों का उलंघन कर रहे है। आखिर क्यों सूचना का अधिकार कानून 2005 का मख़ौल उड़ाया जा रहा है।

जबकि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के प्रावधानों के तहत कोई भी व्यक्ति किसी भी शासकीय संस्था से किसी भी प्रकार की जानकारी धारा 6(1) के आवेदन के तहत निर्धारित 30 दिवसों में सम्बंधित विभाग में नियुक्त लोकसूचना या सहायक लोकसूचना अधिकारी को आवेदन कर प्राप्त कर सकता है और निर्धारित समय अवधि में जानकारी न मिलने या अपूर्ण जानकारी मिलने पर धारा 19(1) के तहत सम्बंधित प्रथम अपीलीय अधिकारी को आवेदन कर सकता है। दुर्भाग्यवश सूचना के अधिकार अधिनियमों के प्रावधानों के तहत वन विभाग के मद्देड में अधिनियम का घोर उल्लंघन जन सूचना अधिकारी द्वारा किया जा रहा है।

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