धन से ज़्यादा महत्त्व संस्कारों को देना चाहिए- गायत्री

संस्कार जीवन पर्यंत धरोहर स्वरूप हमारे साथ रहते हैं

सच्चे मन से भक्ति दिलाती है सभी पापों से मुक्ति

युवा पीढ़ी को धर्म, वेद पुराण और संस्कृति से जोड़े रखना चाहिए

दंतेवाड़ा@ श्री कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में दंतेवाड़ा बस स्टैंड स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर में दो दिवसीय सत्संग का बुधवार को भव्य समापन किया गया। इस सत्संग में कथावाचक सुश्री गायत्री शर्मा ने भक्तों को श्री कृष्ण की बाल लीला एवं क़ंश वध की कथा सुनाई।साथ ही आज की पीढ़ी को धर्म, वेद पुराण, पौराणिक कथाओं और संस्कृति से जोड़े रखने विशेष ज़ोर दिया। तीसरे दिन भव्य आरती के साथ सत्संग का समापन किया गया।

सत्संग समापन के दिन कथावाचक सुश्री गायत्री शर्मा ने कंस वध की कथा सुनाई। इसके साथ ही उन्होंने धन से ज़्यादा संस्कारों को महत्व देने की बात कही। श्रोताओं को संस्कारों का महत्त्व बताते कहा कि जीवन में लक्ष्मी अर्थात धन से अधिक महत्त्व सरस्वती (संस्कारों) को देना चाहिए। लक्ष्मी का स्वभाव चंचल होता है जबकि सरस्वती का स्वभाव शांत है। इसलिए मानव जीवन में लक्ष्मी का आना जाना लगा रहता है परन्तु सरस्वती अर्थात हमारे संस्कार हमारी संस्कृति जीवन पर्यन्त धरोहर स्वरूप हमारे साथ रहते हैं। उन्होंने कहा कि आज कि पीढ़ी को धर्म, वेद पुराण, पौराणिक कथाओं और संस्कृति आदि से हमेशा किसी न किसी माध्यम से जोड़े रखना चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ियां गलत नीतियों और आचरण से बची रहें।

कंस वध के विषय में बताते उन्होंने कहा कि कंस ने कृष्ण और बलराम को मथुरा में उत्सव में बुलाया था। जहां श्री कृष्ण और बलराम ने कई बलशाली पहलवानों से युद्ध कर उनका वध किया। इसके बाद कंस का वध कर ब्रिज वासियों को उसके अत्याचार से मुक्त किया। उन्होंने कहा कि जो प्रभु की सच्चे मन से भक्ति करता है उसे सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।

एकाग्रचित होकर सुनें कथा-
सुश्री गायत्री शर्मा ने श्रोताओं से कहा कि सभी को एकाग्रचित होकर भगवान की कथा सुननी चाहिए। जितने विश्वास के साथ हम भगवान की कथा सुनते हैं हमें उतना ही अधिक फल प्राप्त होता है। श्रृष्टि में कोई ऐसा कार्य नहीं को भगवान की कथा से बड़ा हो। जिसने हमें ये जीवन दिया, आज उसकी भक्ति के लिए हमारे पास समय नहीं है। हम अपना सारा समय सांसारिक भोगविलास में बिता देते हैं और प्रभु ने हमें जिस कार्य के लिए मानव जीवन दिया है उससे भटक जाते हैं।

भव्य आरती के साथ हुआ समापन-
कथावचन के बाद अंत में गायत्री शर्मा ने भगवन श्री कृष्ण, श्री राम एवम् हनुमान जी की आरती गाई। सुश्री गायत्री शर्मा के श्रीमुख से ‘आरती कुंज बिहारी की श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की‘ इस मधुर आरती को सुनकर श्रोता भक्त और पूरा बस स्टैंड परिसर मस्ती में झूमने लगा। नाचते गाते भक्तों ने जमकर फूलों की वर्षा की। आरती के बाद महिलाओं ने सुश्री गायत्री शर्मा को पुष्पाहर पहनाकर सम्मानित किया। वहीं मंदिर समिति के पदधिकारियों द्वारा ढोलक, हारमोनियम और तबला वादक का पुष्पहार पहनाकर सम्मान किया गया।

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