जिस रेट में लग जाता संगमरमर, उस रेट में लगा रहे पत्थर !
आठ करोड़ के ज्योति कलश भवन में छः करोड़ के पत्थर ही
ज्योति कलश भवन में कहां इस्तेमाल हुआ छः करोड़ का पत्थर समझ से परे
कॉलम, फ्लोर और बाउंड्रीवाल में ही लगे हैं लाल पत्थर

दंतेवाड़ा। आरईएस विभाग द्वारा जारी निर्माण कार्यों में व्यापक पैमाने पर आर्थिक अनियमितताएं देखने को मिल रही हैं। यहां पत्थरों के नाम पर बड़ा खेल चल रहा है। भ्रष्टाचार के लिये अफसरों और फर्म कृष्णा इंटरप्राइजेस ने पत्थरों का बड़ा सहारा लिया। मनमाने दर पर पत्थर खरीदी दिखाकर ठेकेदार और अफसरों ने अपनी जेबें गर्म ली। ज्योति कलश भवन में पत्थरों का इस्तेमाल कर इसकी राशि एक करोड़ से आठ करोड़ की गयी और एक बड़े भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जा रहा है। जिस समय ज्योतिकलश भवन की पहली ईंट रखी गयी उसकी लागत एक करोड़ थी, लेकिन अंतिम रूप लेने से पहले से ये आठ करोड़ की हो गयी।

ठेकेदार और आरईएस विभाग में मंदिर के निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार कर लोगों की आस्था से खिलवाड़ करने लगा है। ज्योति कलश भवन में छः करोड़ के पत्थरों का इस्तेमाल किये जाने से ये राशि लगभग आठ करोड़ पहुंचती है, लेकिन इस भवन में छः करोड़ के पत्थर कहां इस्तेमाल किये गये ये समझ से परे है। ज्योति कलश भवन में कॉलम, फ्लोर और बाउंड्रीवाल में ही सेंड स्टोन का इस्तेमाल किया गया है। जहां-जहां पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है वे भी अधिकांश जगह बिना खुदाई वाले हैं। सभी कालम में अभी पत्थर चढ़ाये भी नहीं गये हैं। वहीं फ्लोर में प्लेन पत्थर (सादे) लगाये गए हैं, लेकिन इनका भुगतान भी नक्काशी वाले पत्थर की दर से किया जा रहा है। पीडल्यूडी के एसओआर में सबसे उच्च कोटि का पत्थर चार हजार रूपये है, लेकिन इस्टीमेंट में इसे नान एसओआर आईटम बताकर एक क्रय समिति बनायी, इस क्रय समिति में ईई श्री ठाकुर को छोड़ दें तो कोई भी तकनीकी जानकार नहीं था, और ईई श्री ठाकुर ने साढे सात हजार रूपये स्क्वायर मीटर का दर अप्रूव करा डाला।

एक डिजाईन की खुदाई —-
जिन पत्थरों का इस्तेमाल मंदिर के कार्यों में किया जा रहा है, उनमें बस्तर की संस्कृति और मांईजी के प्रति आस्था को प्रदर्शित करने वाले चित्रों की खुदाई की जानी थी, जिससे कि मंदिर की भव्यता के साथ ही बस्तर की संस्कृति प्रदर्शित हो। लेकिन आरईएस विभाग ने ठेकेदार से सांठगांठ कर डिजाईन बदल डाला और सभी पत्थरों में मशीन से एक जैसी खुदाई करवा रहा है। जिससे कि ठेकेदार के साथ ही आरईएस के सब इंजीनियर सुमन, एसडीओ और ईई श्री ठाकुर भी मुनाफा कमा सके।

समय और राशि की बचत —-
पत्थरों में यदि कारीगरों के माध्यम से खुदाई का काम कराया जाता तो उसमें समय काफी लग जाता, लेकिन वो बेहतर प्रदर्शित होते। कारीगरों द्वारा काम में ज्यादा समय लगने की वजह से ठेकेदार द्वारा कारीगरों को ज्यादा भुगतान करना पड़ता। आरईएस ने पूर्व से ही ये तय कर लिया था कि पत्थरों में मशीन से ही खुदाई करवायी जायेगी, इसलिये ठेकेदार को कम मोटाई वाले पत्थर मंगाये, और इनमें मशीन खुदाई करवा डाली। कम मोटाई वाले पत्थर और मशीन से खुदाई होने की वजह ठेकेदार ने इसमें बड़ी राशि आरईएस विभाग की मदद से बचा ली।
यहां भी होना है पत्थरों का इस्तेमाल —–
ज्योजिकलश भवन के अलावा, प्रवेश द्वार के लिये बने गलियारे और रिटेनिंग वाल के उपरी हिस्से में भी पत्थरों का इस्तेमाल किया जाना है। द्वार के गलियारे में सभी कालम में अलग-अलग भगवान के छाया चित्रों की खुदाई की जानी थी, इसके साथ मांईजी के अलग अलग रूप, मांईजी से जुड़े धार्मिक कार्यक्रम जैसे फागुन मेला, डोली विदाई आदि के छाया चित्रों को अंकित किया जाना था लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। सादे डिजाईन की खुदाई कर पत्थरों को अलग-अलग जगह इस्तेमाल किया जा रहा है।

ईई का फोन बंद —–
इस संबंध में ईई का पक्ष जानने उनसे फोन पर संपर्क किया गया तो उनका फोन लगातार बंद आता रहा। वहीं उनसे कार्यालय में भी मुलाकात नहीं हो सकी।
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