दन्तेवाड़ा@ हिंदी भाषी भारत में भाषाओं की विविधता है इसलिए हर राज्य की क्षेत्रीय बोलिया बदलती रहती है। अगर आप जिस इलाके में मौजूद है और वहाँ बोली जानी वाली भाषा का आपको संपूर्ण ज्ञान है। तो समझो आप की बहुत सी मुश्किलें दूर हो सकती है।
◆ इसी तरह से दन्तेवाड़ा के वनांचल क्षेत्रों में सबसे अधिक गोंडी भाषा बोली जाती है। जो कि कुछ हद तक द्रविड़ से मिलती जुलती है। दन्तेवाड़ा जिले में नक्सली अपनी गतिविधियों को इन्ही आदिवासियों के बीच रच बसकर अंजाम देते रहते है। वही दूसरी तरफ नक्सलप्रभावित इलाको में तैनात फोर्स, सीआरपीएफ, एसटीएफ या जिला पुलिस बल के जवान हो इन्हें गोंडी भाषा का ज्ञान बहुत कम होता है। जिसकी वजह से जवानों को ग्रामीणों को समझाने में, नक्सलप्रभावित इलाको में आपरेशन चलाने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सोचिये अगर युद्धक्षेत्र में आपको क्षेत्रीय बोली का ज्ञान नही तो आपको बड़ी मुश्किलों में दुश्मन डाल सकता है क्योकि आप उनकी भाषाओं को सुनकर भी कुछ नही कर सकते। वैसे दन्तेवाड़ा जिला में जिला पुलिस बल और डीआरजी के बहुत से जवानों को गोंडी भाषा का ज्ञान है।
◆एसपी ने सोचा क्यो न यह भी पैतरा आजमाया जाये, अब भाषा से क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाई जाये
दन्तेवाड़ा एसपी अभिषेक पल्लव इन दिनों गोंडी की ट्यूशन ले रहे है। वे सीख रहे कि कोया माटा (गोंडी भाषा) क्षेत्र में सामुदायिक पोलिसिंग और निशुल्क मेडिकल लगाकर एसपी क्षेत्रभर में ग्रामीण आदिवासियों के दिल मे जगह बनाने के लगातार प्रयास में है इसी कड़ी में 50 इच्छुक पुलिसकर्मी अब पुलिस लाइन कारली में 3 महीने तक गोंडी भाषा (कोया माटा) डीआरजी के जवानों से सीखेंगे। क्योकि डीआरजी लोकल लड़को और समर्पित नक्सलियो से खड़ी की हुई टीम है। दन्तेवाड़ा एसपी अभिषेक पल्लव का कहना है कि गोंडी के ज्ञान से पुलिसकर्मियों को बहुत मदद मिलेगी,वे ग्रामीणों की समस्याओं को समझकर उन्हें अच्छे से समझा पायेंगे। नक्सली अभियान में भी गोंडी का ज्ञान मदद देगा।
इस तरह का प्रयास दन्तेवाड़ा जिले में पुलिस द्वारा पहली मर्तबे देखने को मिल रहा है। निश्चित ही इस अनूठी पहल के आगाज़ से भविष्य में सकारात्मक परिमाण मिलने की प्रबल संभावना बनती है।
The Aware News